कार्यस्थलों पर भी रेपिस्ट मानसिकता के अधिकारी-कर्मचारी का करें विरोध

ये एक मानसिकता है. घटिया मानसिकता. भारत इस तरह की सड़ी-गली मानसिकता से अपने को निकाल नहीं पा रहा है. आये दिन हो रहे बलात्कार का विरोध तो हम जम कर करते हैं पर ये विरोध कमोबेश महज प्रदर्शित करने भर के लिए है. घटना के बारे में सुना-जाना-पढ़ा और विरोध कर दिया और फिर लग गए अपने कामों में. विरोध करना शायद रूटीन वर्क जैसा बनकर रह गया.
      घर में टीवी के सामने बैठा या फिर अखबार लेकर. दुष्कर्म की घटना देखा-पढ़ा और सोचने लगते हैं कि कब रूकेगा ये सब. फिर निकल कर सड़कों पर चलते हैं और लड़कियों को छिपी नजर से निहारने लगते हैं. नाबालिगों तक को. कल्पना में उसका जिस्म. फिर संभलते हुए अगल-बगल झांकते हैं कि कोई देखते हुए देख तो नहीं रहा है. कार्यालयों में साथ काम कर रही महिला वर्कर के बारे में अन्य पुरुष वर्कर से अश्लील अंदाज में बात करते हैं. मन में यह दुर्भावना अक्सर बनी रहती है कि यदि सुरक्षित ढंग से मौका लगे तो शारीरिक सम्बन्ध बनाया जा सकता है. ऐसी मानसिकता सबकी नहीं तो अधिकाँश कार्यालयों के अधिकाँश अधिकारी-कर्मचारियों की तो रहती ही है. ऐसी मानसिकता को रेपिस्ट मानसिकता कह दें तो शायद अपराध नहीं होगा.
      ऐसे माहौल में नौकरीशुदा कुंवारी लड़कियां या फिर शादीशुदा महिलायें कार्यस्थलों पर पूर्णतया सुरक्षित नहीं हैं. माहौल जबतक अनुकूल है तबतक ही सुरक्षित. कभी किसी आकस्मिक काम की वजह से देर हो गई और कार्यालय में पुरुष कर्मचारी के साथ अकेले रह गए तो पुरुषों के हाव-भाव या बात करने के अंदाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये मौका का लाभ उठाने को सोच रहे हैं. ये अलग बात है कि अधिकाँश मामलों में आपकी सख्ती के सामने इनकी हिम्मत जवाब दे देती है. कभी-कभी ये आपको इम्प्रेस कर लाभ उठाने की भी फिराक में रहते हैं. कार्यालय अवधि में शराब का सेवन करने वाले लगभग सारे अधिकारी-कर्मचारी लूज कैरेक्टर के होते हैं ये कहने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं है. उस समय ये रेपिस्ट मानसिकता वाले पुरुष भूल जाते हैं कि उनकी माँ-बहन की ऐसी ही परिस्थिति में आती होंगी. कार्यस्थलों पर यौन शोषण की बातें या फिर प्रयास के मामले अक्सर सुनने को मिलते हैं.
      अब वो दिन गए जब शोषण करने वाले पुरुष लड़कियों को यह कहकर डराने का प्रयास करते थे कि कहीं कहोगी तो तुम्हारी भी बहुत बेइज्जती होगी और लड़कियां उनके झांसे में आकर चुप रह जाती थी. दरअसल वक्त आ चुका है कि महिलायें अब झिझक को छोड़ ऐसे रेपिस्ट मानसिकता वाले अधिकारी-कर्मचारी की मंशा को सबके सामने उजागर करें ताकि इन सफेदपोश बलात्कारियों के बारे में भी दुनियां जान सके.